रहस्यमयी हवेली की कहानी| BHOOT KI KAHANI
कई साल पहले, छोटे से गाँव के किनारे एक पुरानी, विशाल हवेली खड़ी थी, जिसे लोग “रहस्यमयी हवेली” के नाम से जानते थे। गाँव वालों का कहना था कि उस हवेली में कोई नहीं रहता, फिर भी वहाँ रात के समय अजीब आवाज़ें सुनाई देती थीं—कभी कदमों की आहट, कभी किसी के हँसने की आवाज़, और कभी दरवाज़ों के खुद-ब-खुद खुलने की खटखटाहट। कोई भी गाँववाला हवेली के करीब जाने की हिम्मत नहीं करता था, खासकर रात के समय।
उस गाँव में तीन दोस्त रहते थे—आकाश, दीपक, और मोहित। ये तीनों बचपन से साथ थे और बहुत ही साहसी माने जाते थे। वे किसी भी चुनौती को स्वीकार करने में देर नहीं लगाते थे। एक दिन, गाँव के कुछ बच्चों ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा, “तुम लोग तो खुद को सबसे बहादुर मानते हो, पर रहस्यमयी हवेली के पास जाने की हिम्मत है?”
BHOOT KI KAHANI: आकाश, जो तीनों में सबसे ज़्यादा साहसी था, तुरंत बोला, “हम डरते नहीं! हम हवेली के अंदर जाकर रहस्य सुलझा देंगे।”
मोहित और दीपक थोड़े डर रहे थे, लेकिन वे आकाश को अकेले छोड़ने को तैयार नहीं थे। उन्होंने तय किया कि वे उस रात हवेली के अंदर जाएंगे और देखेंगे कि वहाँ सच में क्या हो रहा है। उन्होंने टॉर्च और कुछ रस्सियाँ अपने साथ लीं और सूरज डूबने के बाद हवेली की ओर बढ़ चले।
जैसे ही वे हवेली के पास पहुँचे, हवेली का पुराना, टूटा-फूटा गेट खुद-ब-खुद खड़कने लगा, मानो कोई अदृश्य ताकत उनका स्वागत कर रही हो। हवेली के चारों ओर उग आई झाड़ियों और सूखे पेड़ों ने माहौल को और भी डरावना बना दिया था। हवेली के बड़े-बड़े खिड़कियों से झांकता अंधेरा उन्हें जैसे अंदर बुला रहा था।
आकाश ने टॉर्च जलाते हुए कहा, “चलो, कुछ नहीं होगा। ये सब बस कहानियाँ हैं।”
वे तीनों धीरे-धीरे हवेली के अंदर दाखिल हुए। अंदर का माहौल ठंडा और डरावना था। हर कदम पर उनकी टॉर्च की रोशनी बड़े-बड़े फर्नीचर और धूल भरे पर्दों पर पड़ती, जो कई सालों से हिले तक नहीं थे। हवेली का हर कोना सन्नाटे में डूबा था, लेकिन जैसे ही वे अंदर गए, उन्हें दूर से धीमी-धीमी आवाज़ें सुनाई देने लगीं। वो आवाज़ें किसी के चलने और फुसफुसाने की थीं।
दीपक ने घबराते हुए कहा, “क्या तुमने वो आवाज़ सुनी?”
आकाश ने अपने डर को छुपाते हुए कहा, “यह सब हवा की आवाज़ है, कुछ नहीं है। चलो आगे बढ़ते हैं।” BHOOT KI KAHANI
वे हवेली की पहली मंज़िल पर चढ़ने लगे। सीढ़ियाँ पुरानी और चिटकती हुई थीं, जैसे किसी भी समय टूट सकती थीं। अचानक, वे तीनों रुक गए। सीढ़ियों के ऊपर से एक साया तेजी से गुज़र गया। मोहित ने डर के मारे चिल्ला दिया, “वह क्या था?”
आकाश ने खुद को संभालते हुए कहा, “कोई जानवर होगा। हम देखते हैं।”
वे तीनों धीरे-धीरे ऊपर पहुँचे, और जब वे हवेली की दूसरी मंजिल पर पहुंचे, तो उन्हें एक बड़ा, पुराना दर्पण दिखाई दिया। दर्पण पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी, लेकिन उसमें हल्की-सी चमक थी, जैसे किसी ने उसे हाल ही में छुआ हो। तभी अचानक, दर्पण में कुछ हलचल हुई। तीनों ने देखा कि दर्पण में उनकी परछाई के पीछे एक और साया दिखाई दिया—सफेद लिबास में एक महिला की आकृति!
मोहित के हाथ से टॉर्च गिर गई। दीपक की साँसें तेज़ हो गईं। लेकिन आकाश ने हिम्मत दिखाते हुए कहा, “यह सिर्फ हमारी आँखों का धोखा है।” मगर अब उन्हें भी लगने लगा था कि हवेली में कुछ अजीब है।
तभी, हवेली के किसी कोने से ज़ोर की हंसी की आवाज़ गूँजी। वो हंसी भयानक और ठंडी थी, जैसे कोई उनका मज़ाक उड़ा रहा हो। अब तीनों को यकीन हो गया था कि ये जगह सच में डरावनी है। उन्हें जल्दी से वहाँ से निकलने की ज़रूरत महसूस हुई, लेकिन जैसे ही वे भागने लगे, दरवाजे खुद-ब-खुद बंद हो गए। हवेली की खिड़कियाँ भी ज़ोर-ज़ोर से बंद होने लगीं।
अब उनकी हिम्मत जवाब देने लगी थी। वे तीनों डर के मारे कमरे के एक कोने में दुबक गए। अचानक एक धीमी आवाज़ सुनाई दी, “तुम यहाँ क्यों आए हो?”
उन्होंने देखा कि सामने एक धुंधली आकृति खड़ी थी। वो वही सफेद लिबास वाली महिला थी, जिसकी परछाई उन्होंने दर्पण में देखी थी। वह महिला धीरे-धीरे उनके पास आई और बोली, “यह हवेली मेरी थी। मैंने यहाँ कई साल पहले अपनी जान दी थी, क्योंकि गाँववालों ने मुझे गलत समझा। अब हर रात मैं यहाँ अकेली रहती हूँ, अपनी आत्मा के साथ।”
मोहित ने काँपते हुए पूछा, “आप हमें नुकसान तो नहीं पहुँचाएंगी?”
वह महिला हल्के से मुस्कुराई। उसकी मुस्कान में दर्द और शांति दोनों थे। उसने कहा, “मैं किसी को नुकसान नहीं पहुँचाती। मैं बस चाहती हूँ कि लोग जानें कि मैं यहाँ हूँ। मेरी कहानी सुनकर मेरा दुःख हल्का हो जाता है।”
तीनों ने गहरी साँस ली। उन्हें समझ आ गया कि वह महिला सिर्फ अकेली थी और उसकी आत्मा इस हवेली में कैद थी। उन्होंने वादा किया कि वे उसकी कहानी सबको बताएंगे, ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके।
महिला की आकृति धीरे-धीरे हवा में घुलने लगी। हवेली फिर से शांत हो गई। दरवाज़े खुद-ब-खुद खुल गए। तीनों दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा और तेज़ी से हवेली से बाहर भागे।
अगले दिन, उन्होंने गाँव के लोगों को महिला की पूरी कहानी सुनाई। अब लोग हवेली को “भूतिया” नहीं कहते थे, बल्कि उसे एक आत्मा का घर मानते थे, जो शांति की तलाश में थी।
कहानी से सिख :
कभी-कभी, भूत-प्रेत डराने के लिए नहीं होते, बल्कि उनकी कहानियाँ हमें समझने और संवेदनशील होने की सीख देती हैं। हमें किसी भी स्थान या व्यक्ति के बारे में बिना समझे डरना नहीं चाहिए।
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