मेंढक राजा और सांप की दोस्ती | FROG AND SNAKE HINDI STORY
बहुत समय पहले, एक जंगल में एक बड़ा तालाब था। उस तालाब में ढेर सारे मेंढक रहते थे, जिनके राजा का नाम भोलू था। भोलू स्वभाव से बहुत झगड़ालू और अहंकारी था। तालाब के आस-पास और भी छोटे-छोटे तालाब थे, जिनमें और मेंढक रहते थे। उन तालाबों के भी अपने-अपने राजा थे। भोलू का अक्सर इन अन्य तालाबों के राजाओं से झगड़ा होता रहता था।
भोलू का स्वभाव ऐसा था कि वह छोटी-छोटी बातों पर दूसरों से उलझ जाता था। यदि कोई समझदार मेंढक उसे रोकने या समझाने की कोशिश करता, तो वह उसे धमकाता और अपने साथियों से उसे पिटवा देता। धीरे-धीरे तालाब के सारे मेंढक उससे नाराज होने लगे। भोलू का खुद के परिवार में भी झगड़ा रहता था। वह अपनी हर समस्या का दोष दूसरों पर डाल देता था। FROG AND SNAKE HINDI STORY
एक दिन, भोलू का झगड़ा पड़ोसी तालाब के राजा से हो गया। दोनों में खूब तू-तू, मैं-मैं हुई। गुस्से में भोलू अपने तालाब लौट आया और अपने साथियों से कहा, “पड़ोसी राजा ने मेरा अपमान किया है। हमें उस पर हमला करना चाहिए।” लेकिन तालाब के समझदार मेंढक जानते थे कि झगड़ा भोलू ने ही शुरू किया होगा। वे बोले, “राजा भोलू, पड़ोसी तालाब के मेंढक हमसे ज्यादा ताकतवर और स्वस्थ हैं। हम इस लड़ाई में हार सकते हैं। इसलिए हम लड़ाई नहीं लड़ेंगे।”
यह सुनकर भोलू क्रोध से आगबबूला हो गया। उसने अपने बेटों को बुलाकर कहा, “पड़ोसी राजा ने तुम्हारे पिता का अपमान किया है। जाओ, उनके बेटों को मारकर सबक सिखाओ।” लेकिन भोलू के बेटे चुपचाप खड़े रहे। बड़े बेटे ने कहा, “पिताजी, आपने हमें कभी टर्राने का मौका नहीं दिया। टर्राना हमें हिम्मत और ताकत देता है। बिना हिम्मत के हम किसी को कैसे हरा पाएंगे?”
भोलू अब अपने बेटों से भी चिढ़ गया। एक दिन वह तालाब से बाहर घूमने निकल पड़ा। रास्ते में उसे एक बड़ा सांप दिखा जो अपने बिल में जा रहा था। भोलू को एक चालाक विचार आया। उसने सोचा कि जब अपने ही विरोधी बन जाएं, तो दुश्मन को दोस्त बना लेना चाहिए। वह सांप के पास गया और बोला, “नागराज, मेरा प्रणाम!”
सांप ने उसे देखकर फुफकारा, “अरे मेंढक! मैं तेरा दुश्मन हूं। तुझे खा जाऊंगा, और तू मुझसे बात कर रहा है?”
भोलू बोला, “नागराज, मेरे अपने ही मुझे धोखा दे रहे हैं। मैं आपसे मदद मांगने आया हूं। अगर आप मेरी मदद करेंगे, तो मैं आपको ढेर सारे मेंढक खिलाऊंगा। आप जितना चाहें उतना खा सकते हैं।” FROG AND SNAKE HINDI STORY
सांप को भोलू की बात पसंद आई। उसने कहा, “लेकिन मैं पानी में नहीं जा सकता। मेंढकों को कैसे पकड़ूंगा?”
भोलू ने चतुराई से कहा, “मैंने तालाब के पास गुप्त सुरंगें बनवा रखी हैं। आप उन सुरंगों में जाकर जितने चाहें मेंढक खा सकते हैं। मैं आपको बताऊंगा कि किसे खाना है।”
सांप मान गया और भोलू के साथ सुरंग में जाकर बैठ गया। भोलू ने पहले पड़ोसी तालाबों के मेंढकों को खाने के लिए कहा। सांप ने कुछ ही हफ्तों में सारे तालाबों के मेंढकों को खा लिया। जब सारे पड़ोसी तालाब खाली हो गए, तो सांप ने भोलू से कहा, “अब मुझे खाने के लिए और मेंढक चाहिए।”
भोलू ने अब अपने तालाब के बुद्धिमान और समझदार मेंढकों को खाने के लिए कहा। सांप ने उन्हें भी खा लिया। इसके बाद भोलू ने अपने तालाब की प्रजा के मेंढकों को भी खाने के लिए दे दिया। धीरे-धीरे तालाब के सारे मेंढक खत्म हो गए। अब सांप ने फिर से भोलू से पूछा, “अब किसे खाऊं?”
भोलू ने कहा, “अब तो बस मेरे परिवार के मेंढक बचे हैं।” सांप ने भोलू के परिवार के सारे मेंढकों को खा लिया। अंत में, जब सांप ने फिर से खाने को मांगा, तो भोलू ने मजबूरी में अपनी पत्नी की ओर इशारा किया। सांप ने उसे भी खा लिया। अब भोलू अकेला बचा था।
अंत में सांप ने भोलू से कहा, “अब तेरा भी समय आ गया है।” भोलू डरकर बोला, “नागराज, मैंने आपकी इतनी मदद की, कृपया मुझे छोड़ दो।” लेकिन सांप ने कहा, “तू कौन-सा मेरा सगा है?” और सांप ने भोलू को भी खा लिया।
सीख: अपनों से बदला लेने के लिए अगर हम दुश्मनों का सहारा लेते हैं, तो अंत में हम खुद ही बर्बाद हो जाते हैं।
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