दादी और उसका मुर्गा | Stories For Kids
गाँव के एक कोने में एक पुरानी, छोटी-सी झोपड़ी थी, जिसमें एक बूढ़ी दादी रहती थीं। उनका नाम था दादी सावित्री, लेकिन पूरे गाँव में लोग उन्हें प्यार से “दादी” ही बुलाते थे। दादी बहुत सरल और खुशमिजाज थीं। उनके दिन पुराने किस्से सुनाने और अपने छोटे से आँगन की देखभाल में बीतते थे। पर उनके पास एक सबसे प्यारी चीज़ थी—उनका प्यारा मुर्गा, जिसका नाम था “चमकू।”
चमकू, जैसा नाम था, वैसा ही था। उसका लाल-लाल कलगी, चमकीले पंख, और सीधी चाल। हर सुबह जब सूरज की पहली किरण धरती को छूती, चमकू अपनी जोरदार बांग देता— “कुकड़ू कू!”
Stories For Kids : दादी को पूरा विश्वास था कि चमकू की बांग से ही गाँव जागता है। जब भी वह चमकू को देखती, गर्व से कहती, “अरे, अगर हमारा चमकू न हो तो सारा गाँव सोता ही रह जाए। इसकी बांग से ही सब लोग उठते हैं, कोई नहीं जागता बिना इसके!”
हर सुबह, जब चमकू बांग देता, दादी अपनी खाट से उठतीं और खिड़की से बाहर झाँकतीं। उन्हें लगता कि जैसे ही उनका मुर्गा बांग देता, पूरे गाँव में हलचल शुरू हो जाती है। लोग अपने दरवाज़े खोलते, बच्चे स्कूल की तरफ दौड़ते, और किसान अपने खेतों में जाने की तैयारी करते। दादी को पक्का विश्वास था कि यह सब चमकू की बांग की वजह से होता है।
गाँव के लोग जब भी दादी से मिलने आते, तो दादी हँसते हुए कहतीं, “तुम सब तो हमारे चमकू की बांग सुनकर ही उठते हो। अगर यह सो जाए, तो तुम लोग खेत में देर से पहुंचोगे।”
गाँव वाले भी हँसकर सहमति में सिर हिला देते। उन्हें भी दादी की इस बात पर मज़ा आता था, और कोई उन्हें गलत साबित करने की कोशिश नहीं करता था।
लेकिन एक दिन कुछ अजीब हुआ। उस सुबह चमकू की बांग सुनाई नहीं दी। सूरज आसमान में चढ़ने लगा, लेकिन चमकू चुप था। दादी चौंकीं। “अरे, आज चमकू ने बांग क्यों नहीं दी?” उन्होंने खिड़की से बाहर झाँका। पूरा गाँव अब भी शांत था, कोई हलचल नहीं, सब सो रहे थे।
“देखा, मैंने कहा था ना! अगर चमकू बांग न दे तो सब सोते ही रहेंगे!” दादी ने खुद से कहा।
Stories For Kids : घबराई हुई दादी तेजी से बाहर गईं और चमकू को देखने लगीं। चमकू बिल्कुल ठीक था, बस किसी वजह से आज उसने बांग नहीं दी थी। दादी ने प्यार से उसकी कलगी पर हाथ फेरा और कहा, “अरे चमकू बेटा, तुमने आज क्यों नहीं जगाया सबको?”
दादी ने सोचा, अगर गाँव के लोग जागेंगे ही नहीं, तो सारा काम लेट हो जाएगा। लेकिन फिर उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी—पास की गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे। कुछ ही देर में दरवाज़े खुलने लगे, लोग बाहर निकलने लगे और खेतों की तरफ जाने लगे। गाँव की हलचल वैसे ही चल रही थी, जैसे हर दिन होती थी, भले ही आज चमकू ने बांग नहीं दी थी।
Stories For Kids :दादी थोड़ी देर तक सोच में पड़ गईं। “अरे, तो लोग बिना चमकू की बांग के भी जाग सकते हैं?” वह हैरान थीं। पूरे जीवन उन्हें यह विश्वास रहा कि गाँव में लोग तभी जागते हैं, जब चमकू अपनी बांग देता है। लेकिन अब उन्हें लग रहा था कि शायद उनका प्यारा मुर्गा उतना ज़रूरी नहीं था जितना वह सोचती थीं।
फिर उन्होंने मुस्कुरा दिया। “शायद लोग बिना चमकू के भी उठ जाते हैं, पर हमारे लिए तो यह हीरो है। मेरे दिन की शुरुआत इसकी बांग से होती है, और यह तो मेरे लिए काफी है।”
उस दिन के बाद, दादी ने चमकू की बांग को पूरे गाँव के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए खास माना। हर सुबह जब चमकू “कुकड़ू कू!” करता, दादी मुस्कुराते हुए कहतीं, “अब मेरा दिन शुरू हुआ!”
गाँव जागता था, चाहे मुर्गा बांग दे या नहीं। पर दादी के लिए, चमकू की बांग ने ही उनका दिन रोशन किया, और उनके छोटे से संसार को ख़ास बनाया|
4 thoughts on “दादी और उसका मुर्गा | Stories For Kids”
Comments are closed.