भूतिया पेड़ की रहस्यमयी कहानी | Bhutiya Ped Ki Hindi Kahani
बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में वीर नाम का एक लड़का रहता था। वीर बहुत ही साहसी था, लेकिन उसमें एक आदत थी—वह कभी किसी की बात नहीं मानता था। उसकी दादी अकसर उसे समझातीं कि रात के समय जंगल में अकेले मत जाओ, पर वीर हमेशा हँसकर कहता, “अरे दादी, भूत-वूत कुछ नहीं होते! मैं डरता नहीं!”
गाँव के पास ही एक घना और पुराना जंगल था, जहाँ एक बहुत बड़ा पेड़ था, जिसे गाँव वाले “शीतल पेड़” कहते थे। गाँव के लोगों का मानना था कि शीतल पेड़ के पास रात में कुछ रहस्यमयी होता था। कहते थे, पेड़ के आसपास रात में अजीबोगरीब आवाजें आती हैं, और जो भी वहां रात में जाता है, उसे डरावनी चीज़ें देखने को मिलती हैं।
एक दिन, वीर के दोस्तों ने उससे कहा, “अगर तुम सच में इतने बहादुर हो, तो शीतल पेड़ के पास रात में जाओ। अगर तुम वहां से सुरक्षित लौट आए, तो हम मान लेंगे कि तुम सबसे बहादुर हो।” Bhutiya ped ki hindi kahani
वीर को यह चुनौती बहुत पसंद आई। उसे लगा कि वह सबको दिखा देगा कि भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ नहीं होती। उसने तय किया कि वह उस रात शीतल पेड़ के पास जाएगा और सबको साबित करेगा कि डरने की कोई बात नहीं है।
रात होते ही वीर ने अपने घर से चुपके से निकलने की योजना बनाई। वह एक टॉर्च और अपनी पानी की बोतल लेकर निकल पड़ा। हवा बहुत ठंडी थी, और आसमान में बादल घिरे हुए थे। जंगल के रास्ते पर चलते-चलते, वीर ने महसूस किया कि सबकुछ बहुत शांत हो गया है। कोई आवाज़ नहीं, न पक्षियों की चहचहाहट, न ही हवा की सरसराहट। यह देखकर वीर के मन में हल्का सा डर आया, लेकिन वह खुद से बोला, “मैं डरता नहीं! मैं बहादुर हूँ!”
आखिरकार, वीर शीतल पेड़ तक पहुँच गया। पेड़ बहुत बड़ा और पुराना था, जैसे सदियों से वहाँ खड़ा हो। उसकी शाखाएँ आसमान में फैलकर अंधेरे में खो जाती थीं। वीर ने पेड़ के चारों ओर घूमते हुए देखा कि वहां कुछ खास नहीं था। वह हँसते हुए बोला, “देखा! कुछ भी डरावना नहीं है। ये सब बस कहानियाँ हैं।” Bhutiya ped ki hindi kahani
जैसे ही वीर ने यह कहा, अचानक हवा तेज़ हो गई, और पेड़ की शाखाएँ अजीब तरीके से हिलने लगीं। अचानक वीर को ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उसके पीछे खड़ा हो। उसने तुरंत मुड़कर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। उसकी धड़कन तेज़ हो गई। उसने सोचा कि शायद यह उसका भ्रम है। पर तभी एक आवाज़ आई—एक धीमी, गूँजती हुई आवाज़, जो पेड़ के अंदर से आ रही थी।
“तुम यहाँ क्यों आए हो?” आवाज़ ने कहा। Bhutiya ped ki hindi kahani
वीर के शरीर में ठंडक दौड़ गई। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। “क-कौन है?” उसने काँपते हुए पूछा।
“मैं हूँ… शीतल पेड़ का रक्षक,” आवाज़ ने जवाब दिया। “जो भी मेरी शांति भंग करता है, उसे सजा मिलती है।”
वीर को अब असल में डर लगने लगा था। उसकी टॉर्च अचानक बंद हो गई, और वह घना अंधकार छा गया। वीर ने टॉर्च को फिर से जलाने की कोशिश की, लेकिन वह काम नहीं कर रही थी। पेड़ की शाखाएँ और तेज़ी से हिलने लगीं, और ऐसा लगने लगा कि पेड़ के पत्तों में से धीमी-धीमी हंसी की आवाजें आ रही हैं।
वीर डर से कांपने लगा। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने पहला कदम उठाया, उसका पैर किसी चीज़ में फंस गया। वह गिर गया और घुटनों पर बैठ गया। तभी, पेड़ की शाखाएँ नीचे झुकने लगीं, और ऐसा लगने लगा जैसे वे उसे पकड़ने आ रही हैं।
“मुझे माफ कर दो!” वीर चिल्लाया। “मुझे नहीं पता था कि मैं तुम्हारी शांति भंग कर रहा हूँ। मैं कभी भी किसी की बात नहीं मानता था, लेकिन अब मुझे समझ में आ गया है!”
उसी क्षण, हवा अचानक थम गई। शाखाएँ वापस ऊपर उठ गईं, और वीर ने देखा कि उसकी टॉर्च फिर से जलने लगी थी। सब कुछ शांत हो गया था। वीर जल्दी से खड़ा हुआ और बिना कुछ सोचे-समझे गाँव की तरफ दौड़ पड़ा। Bhutiya ped ki hindi kahani
वह अपने घर पहुँचा और तुरंत अपनी दादी के पास गया। वह हाँफते हुए बोला, “दादी, मुझे माफ कर दो। मैंने आपकी बात नहीं मानी, और मुझे बहुत बड़ा सबक मिला। शीतल पेड़ के पास सच में कुछ अजीब है, और मैंने समझ लिया कि हमें बुजुर्गों की सलाह माननी चाहिए।”
दादी मुस्कुराईं और प्यार से वीर के सिर पर हाथ फेरा। “मैंने तुम्हें यही समझाने की कोशिश की थी, बेटा। जो चीज़ें हम नहीं समझते, उनके बारे में हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए। डर हमेशा बुरा नहीं होता, कभी-कभी वह हमें सही रास्ते पर चलने की सीख देता है।”
कहानी से सिख:
इस घटना के बाद वीर ने कभी भी किसी की सलाह को हल्के में नहीं लिया। उसे समझ में आ गया कि जब बुजुर्ग या बड़े लोग कुछ कहते हैं, तो उसमें हमेशा कोई न कोई गहरी बात होती है। डर का मतलब यह नहीं होता कि हमें कमजोर होना चाहिए, बल्कि वह हमें सिखाता है कि हमें समझदारी और सतर्कता से काम लेना चाहिए।
और उस दिन के बाद, वीर ने कभी भी शीतल पेड़ की शांति भंग करने की कोशिश नहीं की।
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