भूतिया ट्रेन की सवारी  | THE GHOST TRAIN HINDI STORY

भूतिया ट्रेन की सवारी  | THE GHOST TRAIN HINDI STORY

एक छोटे से गाँव के किनारे, पुरानी पटरियों पर एक भूतिया ट्रेन चलती थी। लोग कहते थे कि यह ट्रेन केवल रात में ही दिखाई देती थी, और उसमें सवार होने का साहस किसी में नहीं था। लेकिन एक दिन, तीन बच्चे – अर्जुन, दीपा और मोहित – इस ट्रेन के बारे में सुनकर रोमांचित हो गए। वे तीनों बहुत ही बहादुर और जिज्ञासु थे। उन्होंने फैसला किया कि वे इस भूतिया ट्रेन में सवार होंगे और इसके रहस्य को जानेंगे।

रात का समय था, और पटरियों के पास गहरा सन्नाटा था। अर्जुन ने कहा, “चलो, आज हम इस ट्रेन में बैठकर इसका सच जानेंगे।” दीपा और मोहित थोड़े घबराए हुए थे, लेकिन उन्होंने अर्जुन का साथ देने का निश्चय किया।

थोड़ी देर बाद, पटरियों पर तेज़ी से चलने की आवाज़ आई। सामने से एक काले रंग की ट्रेन आती दिखाई दी, जो धुंध से निकलकर जैसे प्रकट हो गई थी। तीनों बच्चों के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। ट्रेन के दरवाजे अपने-आप खुल गए, और बच्चों ने अंदर कदम रखा। अंदर अजीब-सा ठंडा और सूनसान माहौल था। THE GHOST TRAIN HINDI STORY

अर्जुन ने हिम्मत जुटाकर कहा, “चलो, हम एक साथ रहेंगे और कुछ नहीं होगा।” उन्होंने अपनी सीट पर बैठते ही देखा कि सामने एक बोर्ड पर लिखा था, “सूरज उगने से पहले पहेलियाँ हल करो, नहीं तो यहाँ हमेशा के लिए फँस जाओगे।” यह पढ़कर तीनों बच्चों के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गईं। लेकिन अर्जुन ने फिर हिम्मत से कहा, “हम कर लेंगे!”

ट्रेन चलने लगी, और अजीब-अजीब सी आवाज़ें आने लगीं। अचानक एक पुरानी, भूरे रंग की किताब उनकी सीट के पास गिर गई। दीपा ने उसे उठाकर देखा तो उसमें पहली पहेली लिखी थी:

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*”मैं हूँ समय का साथी, हर पल को नापता हूँ,  

  अगर तुमने मुझे पहचान लिया, तो तुम्हारी यात्रा आसान होगी।”*

THE GHOST TRAIN HINDI STORY : मोहित ने सोचा और कहा, “ये तो घड़ी हो सकती है।” जैसे ही उन्होंने ‘घड़ी’ कहा, ट्रेन में एक आवाज़ गूंजी, “सही उत्तर!” तीनों बच्चे राहत की साँस ले रहे थे कि तभी ट्रेन और तेज़ी से चलने लगी। सामने एक बड़ा, भूतिया चित्र दिखाई दिया जिसमें अगली पहेली लिखी थी:

*”मैं बिना आवाज़ के उड़ता हूँ,  

  और रात में ही मेरी पहचान होती है।”*

अर्जुन ने तुरंत कहा, “ये तो चमगादड़ है!” और उनके उत्तर देते ही एक खिड़की खुल गई, जिसमें चमगादड़ों की तस्वीरें दिख रही थीं। ट्रेन के अंधेरे रास्तों से होकर वे आगे बढ़ते गए। तीसरी पहेली उनके सामने आ गई:

*”मेरा नाम फूलों में है,  

  और मेरी खुशबू सबको भाती है।”*

दीपा ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये गुलाब है!” और तभी ट्रेन की बत्तियाँ तेज़ हो गईं। अब उन्हें लगा कि पहेलियाँ हल करना इतना भी कठिन नहीं था।

लेकिन जब वे अंतिम दरवाजे पर पहुँचे, तो वहाँ अंतिम पहेली लिखी हुई थी:

*”मैं दिन में रोशनी देता हूँ,  

  पर रात में मुझे देख पाना मुश्किल है।”*

तीनों ने थोड़ी देर सोचा, और फिर मोहित ने कहा, “ये सूरज है!” ट्रेन की खिड़कियाँ खुलने लगीं और धीरे-धीरे उजाला बढ़ने लगा। ट्रेन की रफ्तार कम हो गई और वे एक स्टेशन पर पहुँच गए। ट्रेन का दरवाज़ा खुला और तीनों बच्चे बाहर उतर गए। जैसे ही वे बाहर निकले, ट्रेन एकदम से गायब हो गई, मानो कभी थी ही नहीं। THE GHOST TRAIN HINDI STORY

अर्जुन, दीपा और मोहित ने चैन की साँस ली। उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा और कहा, “हमने कर दिखाया!” अब वे जानते थे कि वे कितने बहादुर हैं। गाँव लौटकर उन्होंने अपनी भूतिया ट्रेन की कहानी सबको सुनाई। सभी ने उनकी बहादुरी की तारीफ की और उनकी इस साहसिक यात्रा के बारे में सुनकर हैरान रह गए।

उस रात के बाद, उन्होंने कभी भी उस ट्रेन की आवाज़ नहीं सुनी। लेकिन उन्होंने हमेशा उस ट्रेन की यादों को अपने दिल में बसाए रखा। उन्हें पता था कि अगर वे मिलकर किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं, तो कोई भी डर उन्हें कभी रोक नहीं सकता। THE GHOST TRAIN HINDI STORY

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